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वैदिक - पौराणिक चिंतन   की  गंगा ’ध्रुव - रूपी शैल शिखर से उतरती है। वह दुग्ध की तरह श्वेत धवल है। पूरी सृष्टि में वह व्याप्त है। उसका शब्द ( अट्टहास ) बहुत ही भयंकर है। वह अंतरिक्ष में समुद्र की तरह विशाल झील का निर्माण करती है। उसे धारण करने में पर्वतगण समर्थ नहीं। महादेव ने उसे एक लाख वर्ष से धारण कर रखा है। वह पवित्रतम और पुण्यदायिनी है। उसके स्पर्श मात्र से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। ’ महाभारत , बाल्मीकि रामायण , पौराणिक और अन्य प्राचीन संस्कृत साहित्य ने गंगा से संबंधित समझ को ऐसा ही रूप दिया है। इन ग्रंथों का मानना है कि गंगा का जल दिव्य और कल्याणकारी है। यह मनुष्य का उद्धार करने वाला है। श्रीमद्भागवत महापुराण का एक रूपक है। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। यज्ञ के लिए छोड़े गये घोड़े को इंद्र ने चुरा लिया। सगर के साठ हजार पुत्रों ने घोड़े की तलाश में सारी पृथ्वी छान मारी। घोड़े को ढ़ूंढ़ने के लिए उन्हो...