शक्ति भाग - 2

शक्ति प्रतिमाएँ अनंत विश्व के अंतस्थल में एक जागृत प्रज्ञामय पुरुष विद्यमान है। उस पुरुष की शक्ति की दो भंगिमायें हैं। एक भोगमुखी अथवा अधोगामी है , तो दूसरी ऊर्ध्वमुखी अथवा मुक्तिगामी। दक्ष प्रकृति के सर्जक भोगमुखी शक्ति को वरण करते हैं। वहीं हिमालय प्रकृति के भोगाभिमुख निःश्रेयस या मुक्तिप्रदाता के आश्रय में जीते। नवदुर्गा मोक्षमुखी हैं तो दसमहाविद्याएं भोगमुखी। दसमहाविद्या नवदुर्गा तत्त्व का पूर्वार्द्ध है। सृजन के दौरान शक्ति की भूमिका का ही वर्णन नवदुर्गा और दसमहाविद्या के रूपकों में किया गया है। नवदुर्गा और दसमहाविद्या सर्जक के अन्तर में रह कर उसे जगाती है। दक्ष यज्ञ के पौराणिक रूपक की रचना सृजन के दौरान सक्रिय शक्ति के विभिन्न रूपों की व्याख्या के लिए की गयी है। सृजन के दौरान जीव या पुरुष में अंतर्निहित शक्तियों को वर्गीकृत कर प्रस्तुत कर...