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  देवता और ब्रह्म - पुरुषोत्तम -       उसके हजार सिर , हजार आंख और हजार पांव हैं। वह धरती को चारो ओर से न सिर्फ घेरे हुए है , बल्कि उसके भी ऊपर दस अंगुल तक है। उस पुरुष से यह विराज उत्पन्न हुआ है, और विराज से यह पुरुष। जो हो चुका है , वह पुरुष है। जो होने वाला है , वह भी पुरुष है। पुरुष अमृत ( देवता ) का स्वामी है, और  उनका  भी जो अन्न से बढ़ते हैं।         ऋग्वेद के दसवें मंडल का पुरुष सूक्त सृष्टि के मूल में देवताओं की जगह पुरुष को देखता है। सूक्त देवताओं को सृष्टि के बाद का बताते हुए पुरुष को सर्वस्रष्टा के रूप में प्रस्तुत करता है। इसी मंडल में देववाद के विकल्प की तलाश में कई अन्य सूक्त भी नजर आते हैं। विश्वकर्मा सूक्त , नासदीय सूक्त और ब्रह्मणस्पति के लिए कहे गये सूक्त में उस   स्रष्टा की तलाश की चिंता स्पष्ट दिखलायी पड़ती है। अथर्ववेद इसी सर्वस्रष्टा को ब्रह्म नाम द...