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शिव  - पुरुषोत्तम - शून्य का विस्तार उसका शरीर है, तो आकाश  का गोलाकार हिस्सा सिर। आकाश  की विस्तृत नीलिमा उसके फैले-बिखरे केश  हैं, तो अंतरिक्ष ( पृथ्वी और आकाश  के बीच का हिस्सा ) उसका उदर। दसो दिशाएं केयूर और अंगव से विभूषित उसकी दस भुजाएं हैं, तो सूर्य, चंद्र और अग्नि ( ज्ञान, इच्छा और क्रिया शक्ति  भी ) उसके तीन नेत्र। विस्तृत नील शून्य का सबसे सुंदर रत्न चंद्रमा उसका सिरोभूषण है, तो तारागण उसके वक्ष पर चमचमाते हुए हार।   वेद, ब्राह्मणग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण और आगम ग्रंथों ने भारतीय जन-मन में बसने बाले सबसे लोकप्रिय देवता शिव या शंकर का चित्र कुछ इसी रूप में अंकित किया है। सृजन प्रक्रिया की व्याख्या करने वाली अवधारणा को शिव और इनसे जुड़े प्रतीक आत्मिक, दैविक और भौतिक, तीनों भावों में व्यक्त करते हैं। आत्मिक भाव में ये सृजन के मूल में मौजूद मन के स्वरूप को समझने, इसे अवधारणाबद्ध करने तथा विभिन्न जातीय समूहों के प्रतीकों के आत्मसातीकरण की लंबी प्रक्रिया में निर्मित हुए।  इन ग्रंथों में मौजूद तथ्यों के ...